हवा के बदले बस कुछ पत्तियां मांगती है , जिनके हिलने से प्राणवायु बहती है ,
छाया के बदले बस कुछ टहनियाँ मांगती है ,जिनके इकट्ठे होने से ही ठंडी छाया गिरती है।
तना भी उस खम्भे की तरह है जिस पर यह जीवन ऊर्जा टिकी रहती रहती है,
और जड़े उस नींव की तरह है जिससे वृक्ष रुपी प्रकृति प्रतिस्फुट होती रहती है।
मुसीबत में सबसे पहले माँ याद आती है,जैसा अब होने लगा है ,
सब चल पड़े अब उसकी क़द्र करने, हर कोई प्रकृति में खोने लगा है।
पानी आकाश मिटटी वृक्ष सब इसी के अलग अलग रूप है,
हम जिससे ऊर्जित हो यह वही तेजमयी धूप है।
माँ नाम जो जुड़ा है इस प्रकृति से तो,
तो’शायद चाहकर भी हमसे बदले में ज़्यादा चाह नहीं पाती है।
हम भूल जाते है उसे फिर भी छोड़कर जा नहीं पाती है ,
हमने दिया काला धुंआ और यह हमे इंद्रधनुष दे जाती है।
हमे ज़िंदा रखना है इसलिए और सिर्फ इसलिए कभी मर भी नहीं पाती है।।
धरती और पर्यावरण रूपी ईश्वर को शत शत नमन
सत्य व सुंदर प्रस्तुति 👌🏼👌🏼
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Bahut bahut dhanywad Anita jee.
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Bahaut sundar!
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