ऐसा नहीं है कि कोई राह नही मेरे लिए
मेरा गुरु वो जो साथ चलकर राह दिखाये ।
ऐसा नही है कि कोई सबक नही है मेरे लिए
मेरा गुरु वो जो स्वयं का सबक मुझे सिखाये ।।
अथाह ज्ञान है इस जग में, पर सारा मेरे लिए नही
गुरु वही जो मेरे लिए जरूरी है, वही दोहराये ।
चेतना भी है गुरु और चिंतन भी गुरु से
बिना गुरु के कहीं मेरी चेतना ना सो जाए ।
महत्ता मेरे अस्तित्व की गुरु से
बिना गुरु के यह कहीं खो ना जाये ।।
आँखे मेरी दृष्टि आपकी
सोच मेरी , समझाइश आपकी
मिट्टी से मन मेरा , इससे बनी हुई आकृति आपकी
महिमा आपकी गा ना पाऊं
स्वयं को ही बौना पाऊँ ।
फिर भी मुझे बड़ा बनाये
कमियां भुला कर मुझे अपनाए
आँखें बंद होने पर भी दिख जाए
गुरु वही जो साथ निभाये ।।
सत्य है….
आदि ग्रंथ पृष्ठ स ११०२ पर गुरु अर्जुन देव जी भी यही कहते है।
नानक कचड़िया सिउ तोड़, ढूंढ़ सजन संत पकिया।।
ओई जीवंदे विछुड़ह, ओई मुईया न जाही छोड़।।
यानि आप समझाते है कि कच्चे रिश्तों को छोड़ ए इंसान , ढूंढ़ कोई संत पक्का यानि आधात्मिक गुरु (पक्का रिश्तेदार) जो जीते जी तो साथ देता है, पर मरने के बाद भी छोड़ता नहीं है यानि पाने साथ के जाता है काल के मुंह में नहीं देता है
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क्या बात
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