आँगन में लगी है वो निच्छल, चंचल सी… तुलसी।।
मेरे साथ सदा मुस्कराई,
मेरे हर भावना से वफादारी निभाई।
मेरे रोने पर उसकी भी आंखें भर आयी।
फिर सँभल कर मुझे हिम्मत बंधाई।।
सुगंधित “पल्लव” के भरे पूरे कुल सी… तुलसी।।
हमसे अटूट श्रद्धा पाकर भी वो कभी नही इतराई,
जड़ो को मिट्टी से बांधकर और ऊंची लहलहाई।
हर तीज त्यौहार, दिवाली हमारे संग मनाई,
उसकी भीनी महक ने आरोग्य की खुशबू बिखराई।
पानी मिट्टी धूप और प्रेम, बस इसीमें उसकी दुनिया समाई।।
मुश्किल है उसे शब्दो मे समेटना,
उसकी महिमा अतुल सी…. तुलसी।।
पूजनीय तुलसी।।
अति सुंदर
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