कभी सोचना ज़रूर…
क्या शब्द भी सफर करते हैं?
नहीं? तो क्यूँ चलते हैं हमारे साथ-साथ
हमारी उम्र की तरह,
क्यूँ छूट नहीं जाते उम्र के पड़ावों की तरह…
जिन्हें ज्यादा याद न करो, समय समय पर तरज़ीह न दो,
वो बचपन की तरह धुंधला जाते हैं,
याद करने पर याद आ भी जाते हैं,
भूल जाने पर अपना नियंत्रण नहीं होता, याद करने पर बस चल जाता है
शब्द इस्तेमाल करने का तरीका बस यही सिखा जाता है…
क्या शब्द भी सफर करते हैं?
अगर हाँ, तो क्यूँ भूल जाते हैं हम अपनों द्वारा कहे हुए, जताये हुए भावनाओं की अभिव्यक्तियों को?
क्यूँ ठहरा कर शब्दों के गति को हम रोक देते उनसे निरंतर बहने वाली प्रेम की ऊर्जा को?
क्यूँ उन शब्दों को भुला कर उनके अस्तित्व की सार्थकता को नकारने का प्रयास करते हैं?
फ़िर क्यों दुबारा उनके उपजने की आस रखते हैं?
क्या शब्द ठहर जाते हैं? क्या शब्द भी सफ़र करते हैं?
पता नहीं इस प्रश्न का जवाब क्या है…
पर इतना पता है की जैसा हम चाहते हैं वैसा हो जाता है
यादों के पोषण से कोई शब्द जी लेता है
बिना स्वीकारे कोई शब्द मर जाता है।
हम पर निर्भर है, किसे अमर करना है… किसे दफ़नाना है।।
बोलना हो या सुनना हो, शब्दों का चयन ज़रूरी है,
बिना शब्दों के हर अभिव्यक्ति अधूरी है।
शब्द तो हमारी तरह हैं, प्रेम से सींचने से जीते हैं, जैसे कि हम जीते हैं,
छान लो अमृत, विष की दलदल से।
छना हुआ प्रेम जीवन महकाएगा, सुकून देने वाला हर शब्द जीत जायेगा।
हाँ शब्द भी सफर करते हैं,
हम ही इन्हें और ये हमें अमर करते हैं…
हाँ शब्द भी सफर करते हैं…
बेहद खूब 👌
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