Emotions, Poems

अर्क ए इश्क़

अर्क-ए-इश्क़ कुछ यूँ दिख रहा था..चौदहवीं की रात चाँद का रूप जो बिखर रहा था,शबनम तले अल-सुबह एक पल्लव निखर रहा था.. अर्क-ए-इश्क़ कुछ यूँ दिख रहा था...ठंडक थी वो ऊंचाइयों वाली हिम् की तरह,बैचैन थी वो, कभी मेरी कभी तुम्हारी तरह,नदी सी मैं ,पर्वतो में गुम जिस तरह... अर्क-ए-इश्क़ कुछ यूँ दिख रहा था....महकती… Continue reading अर्क ए इश्क़