Muktak (मुक्तक)

एक खयाल

अपने सही होने का नाज़ था तुम्हें... तुम्हारे जैसे जो होने लगे लोग तो नाज़, नाराज़गी में क्यों बदलने लगा। जो शिकायतें थी कल तक हमारी उसका रंग तुम्हारी उम्मीदों में क्यों ढलने लगा।।