Poems

कुछ दूरगामी प्रभाव ऐसे भी

एक विद्वान अर्थशास्त्री ग्रेशम ने कहा है ” नयी मुद्रा पुरानी मुद्रा को चलन से बहार कर देती है”
यह मत समझियेगा कि अब मैं यह बात ज़िन्दगी से जोड़ने वाली हूँ | यह कथन जीवन के परिप्रेक्ष्य में बिलकुल भी नहीं कही जा सकती। क्योंकि अर्थशास्त्र और जीवन के नियम एक जैसे नहीं है
बहुत भिन्न है जीवन की निरंतरता के लिए जहा भावनाओ की सतह ज़रूरी है वही अर्थ यानि वित्त की निरंतरता के लिए व्यवहारिकता की आवश्यकता प्रमुख रूप से है।

वित्त जीवन चलाने एक स्त्रोत भर है जो बहुत ही आवश्यक है लेकिन आदि काल में जब वित्त नहीं था पृथ्वी पर जीवन तब भी चलता था. कालांतर में लेन देन के ज़रिये विचित्र,और बेशक आज से अलग रहे होंगे जैसे धान,कपडे या अन्य कोई वस्तु लेकिन यदि भावनाये नहीं होती तो इंसान का अस्तित्व कब का ख़त्म हो जाता।
रिश्ते बनाये गए है समाज के सञ्चालन के लिए और समाज बनाया गया है मानव जाति को कुछ नियम देने के लिए , जिससे निरंकुशता ना फ़ैले। किसी भी व्यवस्था को सुचारु रुप से चलाने के लिए नीति नियमो की आवश्यकता पड़ती ही है ।

यहाँ जो बात मुझे अचरज से भर देने वाली है यह है कि आज लोगो ने ग्रेशम का नियम जीवन जीने के लिए अपनाना शुरू कर दिया है “नयी नीति पुरानी नीति को चलन से बाहर कर देती है” सुनने और पढ़ने में अजीब लग रहा है पर यह एक कड़वा सच है

पुरानी नीति के अनुसार इंसान के जीवन से बढ़कर कुछ नहीं था, वित्त तो बिलकुल भी नहीं, कितने भी मतभेद हो मन मुटाव हो लेकिन जीवन दांव पर लगते ही लोग सब कुछ भूलकर उस संवेदना के साथ एक दूसरे की मदद करने निकल पड़ते थे. नयी नीति सिर्फ और सिर्फ पैसे की तरफ से बोल रही है या यूँ कहिये की नयी नीति ही पैसा बन चुकी है

आज कोरोना काल में कुछ लोगो का वर्ग जहाँ एक तरफ अपनी जान दाँव पर लगा कर पीड़ित लोगोकी मदद कर रहा था, वही एक वर्ग ऐसा भी था जो इसे पैसे कमाने का सुनहरा अवसर समझ मौके को भुना रहा था, ऐसा मौका जो उनके जीवन काल में फिर नहीं आएगा। जिज्ञासा है मन में, कि ऐसी क्या मानसिकता रही होगी की दवाई की कीमत सौ गुनी लगाकर बेची जा रही थी या फिर पर्याप्त मात्रा में होने के बावजूद भी जरूरतमंदों की पहुँच से दूर रखी जा रही थी ।
बात सिर्फ एक मानव की ज़िन्दगी तक ही नहीं है । ज़रा सोचिये जो लोग कोरोना की वजह से बीमार हुए और दवाई की अनुपलब्धता के कारण जीवन नहीं बचा सके , उनके परिवार के सदस्य किस मानसिक स्थिति में होंगे ।
यह जानने के बावजूद कि दवाइयों की इतनी कमी नहीं है जितनी की बताई जा रही है. उनके परिवार का व्यक्ति इस कालाबाज़ारी की भेंट चढ़ गया , क्या उसका मानवता पर से विश्वास नहीं डगमगाने लगेगा। इस कालाबाजारी का असर सिर्फ जीवन की समाप्ति के साथ ख़तम होने वाला नहीं है , इस का असर एक नयी मानसिकता और नई पौध को जनम दे सकता है ।

यदि समय पर इसे नियंत्रित कर के सही दिशा में नहीं मोड़ा गया तो समाज में यह सोच खरपतवार का काम करेगी। यहाँ यह समझना और समझाना आवश्यक है कि यह एक दौर था। किसी भी नुक़सान की भरपायी सम्भव नहीं पर भविष्य को इस दौर के दूरगामी परिणामों से बचना हम सब की ज़िम्मेदारी है । इस समय समझदारी का थोड़ा मार्गदर्शन बहुत सारे जीवन को ज्वालामुखी बनने से रोक सकता है जो भविष्य में कोरोना के ख़तम होने के बाद भी कोरोना के विस्फोट को होने से रोक सके।।

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s