कौन कहता है इश्क़ सबके लिए नही होता।
पर हाँ, हमेशा दोनो तरफा नही होता।।
अपने अपने हिस्से का इश्क़ तो किया ही जा सकता है किसी से भी, कभी भी।
पर हाँ… किसी से इज़हार नहीं होता, किसी से कबूल नही होता।।
कोई पाने को मुक्कमल इश्क़ समझे, कोई फ़ना होने को।
कोई भीड़ में भी खोया रहे, कोई तन्हाई में भी तन्हा नहीं होता।।
दर्द और देरी दोनो ही हो सकते है इसमें..
कहने वाले खुदा भी कह देते है इसे।
इसीलिए यह इश्क़ कभी ज़ाया नही होता।।