वक़्त के साथ रात और गहरी हो चली है, देखते है यह कब तक स्याह रह पायेगी,
जब एक नारंगी रोशनी उसे छूकर सुबह में बदल जाएगी।
हालांकि अमावस हो या पूर्णिमा, रात रात ही कहलाती है,
अंधेरी हो या उजली, सुबह के ख्वाब दिखाती है।
पर अंतर तो बस चाँद जितना है,चाहे वो आसमान का हो या उम्मीद का।।
उसी चाँद को मन मे उतारना है।
निराशा की रात को भी सुबह होने तक, पूर्णिमा में बदलना है।।
अति सुन्दर 👌
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