बारिशो का दौर है ,कैसे गुज़र जाने दे।
कुछ नया आने को है, क्यों न उसे आने दे।।
रंगहीन पानी ने रंग भर दिया चारो ओर ,
अपने तन मन को क्यों ना इसमें डुबाने दे
बारिशो का दौर है , कैसे गुज़र जाने दे।।
पंख लग जाते है, इस नन्हे से मन को,
बादलो के साथ इसे क्यों न उड़ जाने दे।
साल भर तरसता ये पानी के उजाले को
पानी की रोशनी में इसे क्यों ना जगमगाने दे।
बारिशो का दौर है, कैसे गुज़र जाने दे
झड़ी जो लग जाती तो रुके नही आसानी से
तेरे मन मे है जो कुछ तो उसे भी बरस जाने दे
धूप लगे सुहानी इस झमाझम के बाद।
मन तक भी उस सुनहरी धूप को आने दे
तप रहा है जो कुछ पानी के इंतज़ार में
कुछ बूंदे डालकर शीतल हो जाने दे
उसके बाद धूप की रश्मियों को बुला,
सारी पुरानी सीलन निकालने दे।।
चलने देना इस बारिश-धूप के खेल को सदा
अपने जीवन में इसे यूँ खिलखिलाने दे
बारिशो का दौर है ना ऐसे गुज़र जाने दे
ना ऐसे गुज़र जाने दे।।