दी हुई ज़िन्दगी उसकी, जैसा वो कहे वैसा कर जा
जो वो कहे हिम पर्वत, तो बर्फ सा जम जा
जो वो कहे शांत सरिता, तो निर्मल जल जैसे थम जा
जो वो कहे पतझड़, तो सूखे पत्ते सा सहम जा
फिर से उठ, न जमने के लिए न थमने के लिए
ना अंत सामने देख, सहमने के लिए
तेरे अंदर जो है वह है अमर,
इसलिए कभी न डर, कभी न डर…