भरोसे की चाह पर चलते जाना
उतार चढ़ाव पर कभी चढ़ते तो कभी उतरते जाना
जो ज़्यादा तेज़ चले बस वही थोड़ा रुक जाए,
जिसकी गलती हो वो झुक जाये
कोई भी नहीं होता पारस
सुधरने का भी होता है अपना रस
एक ही के झुकने से बढ़ जाएगी दूरियां
बिना शब्दों का जीवन हो नीरस
थोड़ा धीरे चले हम
देखना, कहीं तेज़ चलकर कोई थक न जाए
बस जिसकी गलती हो , वो झुक जाए…